देवस्थान विभाग का घाट/मंदिरों पर टिकट प्रयोग स्वीकार्य नहीं, जरूरत पड़ी तो न्यायालय की शरण ली जाएगी

उदयपुर, 11 नवम्बर। उदयपुर में देवस्थान विभाग के नियंत्रण वाले मांजी का घाट स्थित मंदिर में प्रवेश शुल्क लगा दिया गया है। इसे देवस्थान विभाग प्रयोग बता रहा है और जनता के फीडबैक के आधार पर 31 दिसम्बर के बाद निर्णय की बात कही जा रही है। इससे यह आशंका बलवती हो गई है कि क्या यह राज्य भर के देवस्थान विभाग के मंदिरों में प्रवेश शुल्क का नया नियम लागू करने की शुरुआत तो नहीं है। इससे जनता में रोष है और कई संगठनों ने इस शुल्क को तुरंत हटाने की मांग की है। और यह भी मांग की गई है कि इस निर्णय के पीछे सुझाव देने वालों को भी उजागर किया जाए।
वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक सिंघवी सहित शहर के अधिवक्ताओं ने मामले में गुरुवार को जारी संयुक्त बयान में कहा कि मांजी का घाट वहां स्थित प्राचीन मंदिर का है और यह मंदिर सरकार के देवस्थान विभाग के अंतर्गत आता है। जिम्मेदारों ने समाजकंटकों पर नियंत्रण के लिए शुल्क लागू करने का तर्क भी दिया है, तो सवाल यह है कि क्या इसी तरह समाजकंटकों के भय से हर सार्वजनिक स्थल पर सुरक्षा शुल्क थोपने की शुरुआत की जा रही है।
कुछ साल पहले तक सहेलियों की बाड़ी में जो एसआईईआरटी का म्यूजियम था वहां प्रवेश पर कोई शुल्क नहीं था, लेकिन वहां तक पहुंचने के लिए सहेलियों की बाड़ी के शुल्क से तो गुजरना ही पड़ता था। इस बात पर जब आवाज उठी तो इस म्यूजियम को वहां से स्थानांतरित करना ही पड़ा।
सिंघवी ने कहा कि विभाग यह भी बताए कि प्रवेश सहित कैमरा आदि के लिए लगाए गए शुल्क से प्राप्त राजस्व का उपयोग इसी मंदिर में ठाकुर जी को भोग के लिए होगा या नहीं, क्योंकि भगवान भोग को ही तरस रहे हैं, कई बार श्रद्धालुओं की यह पीड़ा भी उजागर हुई है। जिन ठाकुरजी की दौलत की बदौलत क्षेत्रीय विकास में भूमि ‘अर्पण’ कर-कर के देवस्थान विभाग ठाकुर जी के भोग लायक भी निधि नहीं जुटा पा रहा है, इसकी भी जानकारी जनता को उपलब्ध करानी चाहिए। ठाकुरजी की भूमि सम्पदा, शृंगार आभूषण सम्पदा आदि का लेखा जोखा आज तक देवस्थान विभाग ने जनता के सामने नहीं रखा। अब जनता को इन बातों का भी जवाब चाहिए, क्योंकि यदि अन्नकूट के भोग में कोरोना गाइडलाइन का बहाना बनाया जा रहा है तो ऐसी कोई गाइडलाइन नहीं थी कि भोग नहीं लगेगा, सिर्फ भीड़ को नियंत्रित करने के दिशा-निर्देश थे। जिन मंदिरों को आत्मनिर्भर श्रेणी में रखा गया था, उनकी आत्मनिर्भरता इतनी भी नहीं रही कि भोग नहीं लग सकता। राजघरानों के समय भी मंदिरों के बनते समय ही इतनी व्यवस्था कर दी जाती थी कि वे किसी पर निर्भर नहीं रहते थे, तब भाव ठाकुर जी की भक्ति और समर्पण का होता था, वे सबके राजा हैं, उनके आगे सभी शीश नवाते हैं। वे सर्वसम्पन्न हैं, वे आपसे मांगने नहीं आते, हमारी श्रद्धा उनके प्रति समर्पण कराती है।
सिंघवी ने जारी बयान में कहा कि इस विभाग में ऐसे व्यक्तित्व होने चाहिए जो ठाकुर जी के सेवा भाव को समझें, सिर्फ नौकरीभाव से काम नहीं चल सकता। यदि सरकार से अब ये मंदिर संभल नहीं रहे हैं तो उन्हें समाज को पुनः सुपुर्द कर देना चाहिए। समाज इन्हें सम्भाल ही लेंगे, बशर्ते कि उनके समृद्ध और वैभवपूर्ण होने के बाद फिर उस पर अधिग्रहण की नज़र न पड़े।सिंघवी ने कहा कि विभाग अपने अधिकारियों की गलती को छिपाने के लिए बहाने न बनाए और विधान के विपरीत किए गए इस निर्णय को तुरंत वापस ले, अन्यथा कानूनी कार्यवाही भी की जाएगी।
एडवोकेट विजय दाधीच, हितेश वैष्णव, राकेश लोढ़ा, योगेंद्र दशोरा, मनोज अग्रवाल, महेश बागड़ी ने कहा कि देवस्थान विभाग के अधिकारियों को चाहिए कि वे मंदिरों की भू-सम्पदा की सुध ले, उन पर चारदीवारी बनाकर उन्हें सुरक्षित करे, न कि ऐसे नियम बनाए जो कि गलत है।
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