उदयपुर 06 जनवरी 2022: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बीते दिन बठिंडा पहुंचे थे जहां से वे हेलीकॉप्टर से हुसैनीवाला स्थित राष्ट्रीय शहीद स्मारक जाने वाले थे। बारिश और खराब दृश्यता के कारण प्रधानमंत्री ने करीब 20 मिनट तक मौसम साफ होने का इंतजार किया। जब मौसम में सुधार नहीं हुआ तो निर्णय लिया गया कि प्रधानमंत्री सड़क मार्ग से राष्ट्रीय शहीद स्मारक जाएंगे, जिसमें दो घंटे से अधिक समय लगेगा। डीजीपी पंजाब पुलिस द्वारा आवश्यक सुरक्षा प्रबंधों की आवश्यक पुष्टि के बाद प्रधानमंत्री सड़क मार्ग से यात्रा के लिए रवाना हुए थे।
हुसैनीवाला स्थित राष्ट्रीय शहीद स्मारक से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर, जब प्रधानमंत्री का काफिला एक फ्लाईओवर पर पहुंचा तो पाया गया कि कुछ प्रदर्शनकारियों ने सड़क को अवरुद्ध कर दिया है।
प्रधानमंत्री 15-20 मिनट तक फ्लाईओवर पर फंसे रहे। यह प्रधानमंत्री की सुरक्षा में एक बड़ी चूक थी।
इस घटना पर जहाँ भाजपा ने पंजाब सरकार और पुलिस को आड़े हाथों लिया वहीं सोशल मीडिया पर आरोपों और प्रत्यारोपों का दौर शुरू हो गया।
इसी क्रम में काँग्रेस के कद्दावर नेता पवन खेड़ा ने पंजाब के घटनाक्रम की तुलना उदयपुर में इंदिरा गाँधी और इसके बाद राजीव गाँधी के उदयपुर दौरे से करते हुए प्रधानमंत्री मोदी को घेरने की कोशिश की ।
काँग्रेस नेता पवन खेड़ा ने ट्वीट कर कहा-
1982 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के काफिले को एमबीपीजी (MBPG) कॉलेज के गेट पर छात्रों ने रोजगार संबंधी मांगों को लेकर रोक दिया था । इंदिरा जी ने काफिला रोका ,ज्ञापन लिया , कार्यवाही का आश्वासन दिया और छात्रों को गवर्नर हाउस आमंत्रित किया।
80 के दशक की ही बात है। राजीव गांधी उदयपुर के गांधी ग्राउंड में एक सभा को संबोधित कर रहे थे कि अचानक सैकड़ों नौजवान सभा स्थल में सरकार विरोधी नारे लगाते हुए घुस गए। राजीव जी ने मुस्कुराते हुए वहीं मंच से ही उनसे वार्तालाप शुरू कर दिया । तत्पश्चात नौजवानों का प्रतिनिधिमंडल राजीव जी से सर्किट हाउस में मिला और चर्चा की।
एक लोकतंत्र वो था जहां टुकड़ी भर छात्रों ने प्रधानमंत्री का काफिला रोक उनसे कार्यवाही का भरोसा और मुलाकात का समय करवा लिया,
एक लोकतंत्र ये है जहां लाखों किसानों ने राजधानी घेरी, सैंकड़ो की जान चली गई,पर प्रधानमंत्री के मुख से संवेदना के दो शब्द नहीं निकले। कानून तब वापस लिए जब पांच राज्यों के चुनाव सामने आ गए ।
एक सशक्त लोकतंत्र की बुनियाद परस्पर संवाद है, प्रधानमंत्री ने यह परंपरा तोड़ दी।
यह सिर्फ 'मन की बात' करने के साइड इफेक्ट हैं। उम्मीद है कि प्रधानमंत्री जी कम से कम अब किसानों का वोट खरीदने की जगह उनसे एक सहज संवाद और मजबूत रिश्ता स्थापित करने का प्रयास करेंगे ।
एक सशक्त लोकतंत्र की बुनियाद परस्पर संवाद है, प्रधानमंत्री ने यह परंपरा तोड़ दी।
मोदी जी, आप को चुनना है कि आप सिर्फ अपने समर्थकों के प्रधानमंत्री हैं या पूरे देश के