जयपुर, 29 जुलाई। इस बार मानसून राज्य पर कृपा और समृद्धि बरसा रहा है लेकिन अच्छा समय खुशियां मनाने के साथ ही भविष्य के लिए अधिक चौकस और तैयार रहने की भी सीख देता है ताकि कभी मानसून हमारी जीवटता की परीक्षा ले तो हम सफलता प्राप्त करें। इसी भावना से दौसा जिला कलक्टर श्री देवेन्द्र कुमार जिले में भू—जल पुनर्भरण के लिए लगातार प्रयासरत हैं क्योंकि बीसलपुर का पानी आने के बावजूद जिले में सिंचाई का प्राथमिक साधन भूजल ही है। कलेक्टर की पहल पर पंचायती राज विभाग 11 नाकारा एवं सूख चुके बोरवेल का रिचार्ज शाफ्ट के माध्यम से जल पुनर्भरण कार्य करवा रहा है। जिला कलक्टर ने मंगलवार को सिकंदरा ब्लॉक की ग्राम पंचायत गंडरावा में चल रहे इस कार्य का निरीक्षण किया और अधिकारियों को कार्य के सम्बन्ध में आवश्यक दिशा-निर्देश प्रदान किए।
जिला कलक्टर ने बताया कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने ‘कर्मभूमि से मातृभूमि’ एवं मुख्यमंत्री श्री भजनलाल शर्मा ने ‘वन्दे गंगा-जल संरक्षण, जन अभियान’ के माध्यम से पानी के महत्व को रेखांकित करते हुए अपने क्षेत्र को जल आत्मनिर्भर बनाने का आह्वान किया है। उसी क्रम में पंचायती राज विभाग के माध्यम से जिले में पानी की समस्या को देखते हुए एक नई पहल की है। इसके तहत पीएचईडी के 11 नाकारा बोरवेल का चिह्नीकरण कर रिचार्ज शाफ्ट के माध्यम से पुनर्भरण कार्य करवाया जा रहा है। उन्होंने बताया कि सिकंदरा ब्लॉक में 4, बसवा में 3, बांदीकुई में 2 तथा दौसा एवं महवा में एक-एक नाकारा और सूखे बोरवेल को चिह्नित कर पुनर्भरण कार्य करवाया जा रहा है।
पर्याप्त जलग्रहण क्षेत्र में बनाए जाते हैं पुनर्भरण गड्डे—
पीएचईडी के अधिशाषी अभियंता श्री सीताराम मीना ने जल पुनर्भरण की इस तकनीक की विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि सबसे पहले पुनर्भरण गड्डे बनाए जाते हैं, जो ऐसी कृत्रिम संरचना होती है जिससे पानी का जमीनी स्तर ऊंचा किया जा सकता है। पुनर्भरण गड्डों में संरचना पूर्ण होने के बाद कुओं की तरह खुली जगह नहीं होती है जिससे दुर्घटना होने का खतरा नहीं रहता है। यह गड्डे ऐसे स्थानों पर बनाये जाते हैं जहां पर्याप्त जलग्रहण क्षेत्र उपलब्ध हो, जमीन में पानी का रिसाव तेजी से हो, ट्यूबवैल, कुएं अथवा जमीन के नीचे बने स्टोरेज टैंक के पास हो तथा घाटीनुमा स्थान हो। पुनर्भरण के लिए जमीन के अन्दर पानी का तल, जमीन की सतह व इसके नीचे मिट्टी का प्रकार अति महत्वपूर्ण है। यदि सतही मिट्टी काली हो व इसके नीचे बालू मिट्टी हो तो यह पुनर्भरण के लिए उपयुक्त होती है।
आधे से तीन मीटर व्यास के होते हैं गड्डे—
अधिशाषी अभियंता श्री सीताराम मीना के मुताबिक पुनर्भरण गड्डे आधे से तीन मीटर व्यास के हो सकते हैं। यदि जलग्रहण क्षेत्र पर्याप्त है व जल रिसाव की दर अधिक हो तो गड्डे बड़े आकार के बनाए जाते हैं। इन गड्डों की गहराई 2 से 3 मीटर रखी जाती है। जहां तक संभव हो, गड्डों की गहराई बिखरी हुई चट्टानों तक या पोरस मिट्टी तक होनी चाहिए। गड्डों के अन्दर उल्टी फिल्टर सामग्री की तीन परत बिछायी जाती है। सबसे नीचे मोटी गिट्टी अथवा बोल्डर को एक तिहाई हिस्से में भरा जाता है, उसके बाद बारीक गिट्टी इसके दूसरे एक तिहाई हिस्से में भरी जाती है तथा इसके ऊपर तारों की बारीक जाली लगाकर शेष एक तिहाई हिस्से में मोटी रेत भर दी जाती है। गड्डों को बरसात का अत्यधिक जल आने वाले निचले स्थानों पर बनाया जाता है।
भू जल ऊंचा करने की काफी सस्ती संरचना—
पुनर्भरण गड्डे जमीनी जल ऊंचा करने की काफी सस्ती संरचना है। गांव या शहर के हैंडपम्प व नलकूपों का जल जहां सड़क से बहता हुआ बेकार चला जाता है वहां भी छोटे आकार के गड्डे निर्मित कर जल को बचाया जा सकता है व हैंडपम्प एवं नलकूपों की क्षमता बढ़ाई जा सकती है। पुनर्भरण गड्डों के जलग्रहण क्षेत्र में जीवाणु अथवा रासायनिक पदार्थ नहीं होने चाहिए तथा पुनर्भरण जल प्रदूषण मुक्त होना चाहिए।
जिला कलक्टर के निरीक्षण के दौरान अधिशाषी अभियंता श्री सीताराम मीना, सहायक अभियंता श्री रमेश चंद मीना एवं कनिष्ठ अभियंता श्री राजू वेदवाल उपस्थित थे।