20 मई 2022 :वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद में शिवलिंग मिलने के दावे पर मीडिया सहित जनमानस में बहस जारी है। कोई शिवलिंग कह रहा है तो कोई फव्वारा!
ज्ञानवापी मस्जिद में शिवलिंग के दावे पर तरह-तरह के सवाल उठाए जा रहे हैं। मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यह शिवलिंग नहीं बल्कि वजूखाने में लगा फव्वारा है। वहीं हिंदू पक्ष के मुताबिक यह शिवलिंग है। जबकि यह स्ट्रक्चर इसलिए शिवलिंग जैसा है क्योंकि यह पुरा काले पत्थर का बना है। इसके अलावा इसके बीच में कोई छेद नहीं है जो किसी पाईप लाइन तक जाता हो,जिससे कि इसे फव्वारा माना जा सके।
शिवलिंग रूपी आकृति के ऊपर सीमेंट से कुछ पत्थर जैसे चिपकाये गए है। जिस पर एक प्लस का निशान बना हुआ है। सर्वे के दौरान झाड़ू की सींक डालकर देखा गया तो यह 6 इंच तक अंदर गई। लाइट लगाकर देखा गया, 6 इंच से ज्यादा सींक नहीं गई।
सर्वे के दौरान जब मुस्लिम पक्ष से पूछा गया कि क्या कहीं से यहां पानी लाने के लिए पाइप लगाई गई है तो लोगों ने कहा नहीं कोई पाइप नहीं लगाई गई है।
मस्जिद कमिटी के लोगों से जब पूछा गया कि अगर यह फव्वारा है तो इसे चालू कर दीजिए। इस पर उन्होंने जवाब दिया कि यह खराब है। जब पूछा गया कि कब से खराब है तो बताया गया कि वर्षों से। उसे पूरी तरह साफ करने के बाद भी ऐसा कुछ नहीं मिला कि वहां पाइप से कुछ आ रहा है। न किसी अंडरग्राउंड पाइप का सुराग मिला। इस पर कमिटी के लोगों से पूछा गया क्या और कोई अंडरग्राउंड पाइप आता है तो उन्होंने कहा नहीं। उनसे कहा गया कि फिर यह फव्वारा कैसे हुआ। इसे लेकर उनका कहना था कि ऐसा बताया गया है। सच तो यह है कि वहां पानी आने-जाने का कोई रास्ता नहीं था।
सर्वे के दौरान जांच कमिश्नर विशाल सिंह मौजूद थे। वह झाड़ू की सींक खोजकर लाए। उन्होंने देखना चाहा कि ऊपर से यह कितना गहरा है। जब उन्होंने सींक को डाला तो वह सिर्फ 6 इंच अंदर चली गई। फिर लाइट मंगाई गई और फोटोग्राफी की गई। 6 इंच से ज्यादा कुछ नहीं था। इसका भी जवाब मस्जिद कमिटी के लोग नहीं दे सके।
जहां से शिवलिंग रूपी आकृति मिली ,वहां 25 बाई 25 का वजूखाना है। वो पूरा पानी से लबालब भरा हुआ था। जैसे ही पानी खाली कराया गया ,यह शिवलिंग सरीखी आकृति उभरकर सामने आई। यहां ध्यान रखने वाली बात है कि पूरी साफ सफाई प्रशासनिक अधिकारियों ने कराई। एक प्रशासनिक अधिकारी ने इस बात पर गौर किया कि वह आकृति एक ही पत्थर से बनी हुई है। इसका रंग काला है। यह शिवलिंग सरीखा लगता है। शिवलिंग रूपी आकृति के ऊपर चौकोर तरीके से कुछ जोड़ा गया है। अगर उसे हटा दिया जाए तो वो पूरी तरह से शिवलिंग ही दिखाई पड़ता है।
अगर इसे फव्वारा माना जाये तो पुराने जमाने में बिजली होती नहीं थी। पुराने जमाने के फव्वारे को चलाने के लिए पानी को काफी ऊपर से गिराया जाता था और वह दबाव की वजह से फव्वारे का आकार लेता था। ज्ञानवापी परिसर में या विश्वनाथ मंदिर में ऐसा कोई सिस्टम फव्वारे का कभी नहीं दिखा। शिवलिंग रूपी आकृति के ऊपर कुछ सीमेंट जैसा लग रहा है। यह ऊपर वाइट सीमेंट जैसा रखा हुआ है।
इतने रेडियस का फव्वारा होना असंभव है, अगर यह फवारा होगा तो इसके नीचे कोई सिस्टम होगा। इसका पूरा मेकैनिज्म होगा। यह रिसर्च का विषय है कि यहां पानी की सप्लाई कैसे होती होगी? अगर कोई सिर्फ फव्वारा बनाएगा तो बेसमेंट में पूरा सिस्टम बना होगा।
अगर कोई दावा कर रहा है कि यह फव्वारा है तो इसे ऑपरेशनल किया जा सकता है, इसे चला कर देखा जा सकता है, जो लोग इसे फव्वारा कह रहे हैं ,वही इसे चला कर दिखा दे तो माना जा सकता है कि यह फव्वारा है और अगर यह फव्वारा नहीं है तो हिन्दू पक्ष के दावे के अनुसार यह शिवलिंग है। अभी तक चलते हुए फ़व्वारे का कोई फ़ोटो या वीडियो भी सामने नहीं आया है।
पर्याप्त रोशनी न होने के कारण कैमरे में शिवलिंग रूपी आकृति काला ही दिख रही है और उस काले शिवलिंग रूपी आकृति पर ताजा लगा हुआ उजला सीमेंट साफ साफ़ दिख रहा है। शिवलिंग पर पांच पत्थरों के इर्दगिर्द बेतरतीब लगे सफेद सीमेंट कुछ और कहानी कह रहे है। अगर यह सैकड़ों साल पुराना फव्वारा होता तो ऊपर लगे पांच पत्थर और सीमेंट पर भी काई की परत जमती और वह भी काला दिखाई देता। यह साफ दिखाई दे रहा है कि उस पर लगा पत्थर और सीमेंट ताजा है।
साथ ही आकृति देख लग रहा है कि आनन फानन में फव्वारे की कहानी घड़ने के लिए सीमेंट लगा फ़व्वारा दिखाने की कहानी रची गयी और जल्दबाजी में सीमेंट शिवलिंग रूपी आकृति पर इधर उधर बिखर गया।