UIT ने झील तंत्र को अवैध तौर पर नियमित किया,ACB ने दर्ज़ किया मामला !
उदयपुर शहर के झील तंत्र और बहाव क्षेत्र को बर्बाद करने के लिए उदयपुर प्रशाशन सहित नगर विकास प्रन्यास उदयपुर के अधिकारी हाथ धोकर पीछे पड़ गए है। निर्माण नियंत्रित क्षेत्र में जहाँ गरीबों और सामान्य लोगों को अपने पुराने घर में सीढ़ी बनाने के लिए रोक दिया जाता है वही रसूखदार और अमीर लोगों के लिए पैसे के बूते झील बहाव क्षेत्र और झीलों के किनारे मकान और होटल बनवाना बायें हाथ का खेल है। पिछले 3 सालों में पीछोला झील,स्वरूपसागर झील,उदयसागर झील और फतहसागर झील के पास ऐसे ढेरों निर्माण है जो कानून के दायरे से बाहर निकल कर जुगाड़ और सेटिंग के सहारे खड़े कर दिए गए है।
ऐसा ही एक मामला अब नगर विकास प्रन्यास (UIT) के अधिकारियों के गले की घण्टी बन गया है। उदयपुर के बूझड़ा क्षेत्र में मुंबई के" ईशान क्लब एण्ड रिसोर्ट प्राइवेट लिमिटेड" के ताज अरावली रिसोर्ट के लिए अमरजोक नदी पेटे की जमीन पर कब्जा कर बनाए 40 फीट रास्ते को आधार मान जमीन का नियमन कर वाली यूआईटी के अधिकारियों के खिलाफ देर से ही सही लेकिन आखिरकार भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने परिवाद दर्ज कर भ्रष्टाचार की पोल खोलने के लिए जांच प्रारंभ कर दी है। भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो द्वारा दर्ज किए गए मुक़दमे में यूआईटी अधिकारियों की गड़बड़ियों की भूमिका को लेकर गहन जांच होने वाली है। भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के अधिकारी ये जांचने में जुट गए है कि किस अधिकारी ने कैसे और किन नियम और कानूनों का उल्लंघन कर फाइल को पास कर जमीन का नियमन कर दिया गया।
मजे कि बात ये है कि नियमन करने के बाद यूआईटी ने जमीन के एकीकरण का प्रस्ताव भी राज्य सरकार के नगरीय विकास विभाग को भेज दिया था। ईशान क्लब के मुंबई में अंधेरी वेस्ट, लोखंडवाला काम्प्लेक्स निवासी निदेशक राजीव आनंद और उनकी पत्नी चारू आनंद ने नियमन के लिए यूआईटी को पहले दो बार आवेदन किए थे। ताज अरावली रिसोर्ट ने बूझड़ा गांव की आराजी संख्या 158/1, 159, 2311/160, 161 कुल 04 रकबा 2.0700 हैक्टेयर भूमि के नियमन की पहली बार फाइल लगाई थी जिसे सचिव ने 11 अगस्त 2016 को सूचना पत्र भेजकर इस आराजी में रिसोर्ट तक पहुंचने का रास्ता उपलब्ध नहीं होने की बात कहकर आवेदन को खारिज भी कर दिया था। बाद में रिसोर्ट प्रबंधन ने संभागीय आयुक्त भवानीसिंह देथा की अदालत में एक मुकदमा दर्ज़ करवाकर सेटलमेंट से पहले इस जमीन पर राजस्व रिकॉर्ड में दर्शाए पुराने रास्ते का वाद जीता और इसे राजस्व रिकॉर्ड में अंकन करवाकर जमीन का नियमन कराने की दूसरी बार फाइल लगा दी। दूसरी बार आवेदन करने पर 14 जुलाई 2017 को UIT के पूर्व सचिव रामनिवास मेहता ने फिर से इस फाइल को खारिज कर दिया।
नियमन करने के आदेश पर आपत्तियां होने के बाद यूआईटी ने पूर्व में हो चुकी 90-ए की कार्रवाई रिपोर्ट तथा रिसोर्ट की पूर्व में नियमित जमीन दोनों को संयुक्त करने की कार्रवाई पर नगरीय विकास विभाग के संयुक्त शासन सचिव प्रथम को पत्र भेजकर मार्गदर्शन मांग लिया था।
दूसरी बार आवेदन पर तत्कालीन UIT सचिव राम निवास मेहता ने अपने आदेश में कहा कि खसरा संख्या 106, 108, 198 पिछोला झील को भरने वाली बूझड़ा की अमरजोक नदी के सहारे रास्ता उपलब्ध होने का आवेदन में रिसोर्ट प्रबंधन ने उल्लेख किया है लेकिन राजस्थान काश्तकारी अधिनियम 1955 की धारा 16 और उच्च न्यायालय की जनहित याचिका अब्दुल रहमान बनाम राजस्थान राज्य के पारित निर्णय के अनुसार नदी, नालों में अथवा उनके बहाव क्षेत्र में किसी प्रकार का अवरोध पैदा नहीं किया जा सकता है।
जल संसाधन विभाग से यूआईटी ने अनापत्ति प्रमाण पत्र मांगा तो जल संसाधन विभाग ने 5 फरवरी 2016 को यूआईटी को रिपोर्ट में बताया कि आराजी नंबर 106, 198, 199 राजस्व रिकार्ड के अनुसार नदी होकर नदी का भाग है और नदी का बहाव नहीं होने पर ग्रामीण इससे आते-जाते हैं। हाईकोर्ट की जनहित याचिका आदेश के तहत नदी के बहाव क्षेत्र को बाधित नहीं किया जा सकता है। इसके साथ ही राजस्थान नगरीय क्षेत्र (कृषि भूमि का गैर-कृषिक प्रयोजन के लिए) आयोग की अनुज्ञा और आवंटन नियम 2002, नियम 3 के उप नियम 12 के अनुसार भी यह प्रतिबंधित है। इसलिए खसरा नंबर 106 अमरजोक नदी का होने से इसके पेटे में से विधिक, तकनीकी और सुरक्षा की दृष्टि से रास्ता देना संभव और उचित नहीं है।
दो बार फाइलें निरस्त होने के बावजूद आवेदक ने तीसरी बार आवेदन किया तो यूआईटी ने 9 मई 2019 को इस जमीन की 90-ए की कार्यवाही को मंजूरी दे दी। इसके लिए यूआईटी ने ले आउट प्लान समिति की 12 अप्रेल 2019 को हुई बैठक में रख प्रस्ताव को सर्वसम्मति से नियमन करने का निर्णय कर लिया था। रोचक बात ये है कि तीसरी बार आवेदन होने तक पूर्व सचिव मेहता का जयपुर ट्रांसफर हो चुका था और अब तीसरी बार आवेदन पर चली फाइल के दौरान इन सभी तथ्यों को यूआईटी ने इस दौरान नकार दिया कि नियमित की रही जमींन नदी पेटे पर कब्जे की है और दो बार पहले भी यूआईटी इस आवेदन खारिज कर चुकी है।
अब भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के अधिकारी इस केस की तह पर पहुँच चुके है और यूआईटी के कार्यकुशल अधिकारियों पर कानून के डण्डे की गाज़ कभी भी गिर सकती है।