उत्तर प्रदेश में अपराध की दुनिया में खौफ का दूसरा नाम रहे अतीक अहमद की एक वक्त सियासी दुनिया में भी तूती बोलती थी। अतीक का खौफ इतना था कि उसके सामने चुनावी रण में उतरने वाले हर प्रत्याशी को अपनी जान जाने का डर सताता था। जब अतीक अहमद माफ़िया से माननीय बना तो उसकी एक इंसान से कभी नहीं बनी, वो थी बसपा सुप्रीमो मायावती। बहुजन समाज पार्टी के भीतर अतीक को लेकर मायावती ने पहले ही साफ़ कर दिया था कि अतीक की उनके दिल में या पार्टी में कोई जगह नहीं है। मायावती की इस नाराजगी के पीछे एक बेहद बड़ा कारण था।
क्या था गेस्ट हाउस कांड का घटना क्रम
6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद गिरी तो केंद्र सरकार ने कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त कर दिया। 1993 में चुनाव हुए। बीजेपी की लोकप्रियता से वाकिफ सपा और बसपा के नेताओं ने तय किया कि साथ चुनाव लड़ेंगे। मुलायम सिंह ने 256 सीटों पर प्रत्याशी उतारे। 109 जीत गए। कांशीराम ने 164 उतारे, उनमें 67 जीत गए। बीजेपी के खाते में 177 सीटें आई थीं जो 212 के बहुमत के आंकड़ों से दूर थी। ध्यान रहे उस वक्त यूपी-उत्तराखंड एक थे और सीटों की संख्या 422 थी।
सपा और बसपा ने मिलकर सरकार बना ली। शुरुआती दौर में सरकार सही चली। मंडल कमीशन की रिपोर्ट, सरकारी नौकरियों और शिक्षा संस्थाओं में दलितों और पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण के प्रति समर्थन ही दोनों पार्टियों को जोड़ने का सैद्धांतिक सूत्र था। सरकार बनने के बाद कांशीराम ने यूपी की जिम्मेदारी मायावती को सौंप दी और खुद दूसरे राज्यों में पार्टी का विस्तार करने में जुट गए।
मुख्यमंत्री को बुलाकर इंतजार करवाते, फिर लुंगी पहनकर मिलने जाते कांशीराम
कांशीराम कभी मुलायम से मिलने नहीं जाते थे। उनकी जिद होती थी कि मुलायम सिंह उनसे मिलने राज्य के अतिथि-गृह में आएं। मुलायम आते थे तब कांशीराम आधे-आधे घंटे इंतजार करवाते थे। अंत में बड़ी लापरवाही के साथ बनियान और लुंगी पहनकर नीचे उतरते थे। मीडिया के कैमरों के कारण मुलायम का संकोच और बढ़ जाता था।"
फिर पंचायत चुनाव में बसपा हारी और सपा जीती तो बढ़ गई दूरियां
दरअसल ये साल 1995 की बात है, जब अतीक अपराध की दुनिया में अपना एक अलग नाम बना चुका था, और अब वो सियासी दुनिया में भी कदम रखने को लेकर बेकरार था। इसी समय सपा और बसपा ने गठबंधन में 1995 में यूपी में पंचायत चुनाव हुए, इस चुनाव में सपा ने 50 में से 30 जिलों में जीत दर्ज की। लेकिन सपा की सहयोगी बहुजन समाज पार्टी को महज 1 सीट पर ही जीत हासिल हुई। 9 सीटों पर बीजेपी ने झंडा लहरा दिया तो 5 पर कांग्रेस ने फतह दर्ज की। मायावती को ये बात बिलकुल रास नहीं आई। मायावती ने खुद को ठगा हुआ सा महसूस किया।
1 जून 1995 को क्या हुआ था फिर
1 जून 1995 की बात है जब प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी, बाबरी विध्वंश के बाद यूपी में सियासी हवाएं लगातार गर्म थी। इस बीच मुलायम सिंह को यह खबर लगी कि बसपा समर्थन वापस लेकर बीजेपी के सहयोग से सरकार बनाने का दावा पेश करने के लिए गवर्नर मोतीलाल बोरा से मिलने के लिए तैयार है। अगले ही दिन मायावती ने 2 जून, 1995 को लखनऊ के मीराबाई स्टेट गेस्टहाउस में बसपा विधायकों और सांसदों की एक मीटिंग बुलाई। इसी दौरान कथित तौर पर अतीक अहमद समेत समाजवादी पार्टी के करीब 200 से ज्यादा कार्यकर्ता और विधायक गेस्ट हाउस में पहुंचे, जहां मायावती बैठक कर रही थी। इस दौरान मायावती को गलियां दी गई, उन्हें मारने का भी प्रयास किया गया।
विधायकों को उठाया और गाड़ी में फेंकना कर दिया था शुरू
सपा कार्यकर्ता भद्दी-भद्दी गालियां दे रहे थे। जातिसूचक सबसे अधिक। बसपा के विधायकों ने मेन गेट बंद करना चाहा तभी उग्र भीड़ ने उसे तोड़ दिया। इसके बाद बसपा के विधायकों को हाथ-लात और डंडों से पीटा जाने लगा। पिटाई के दौरान विधायकों से मुलायम सिंह को समर्थन देने के लिए एक शपथ पत्र पर सिग्नेचर करवाया जा रहा था। विधायक इतने डर गए कि कोरे कागज पर सिग्नेचर करके देने लगे। पांच बसपा विधायकों को जबरन गाड़ी में बैठा लिया गया।
कहा जाता है कि जिस वक्त गेस्ट हाउस में यह घटना हो रही थी उस वक्त लखनऊ के सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस ओपी सिंह मौजूद थे। वह कार्रवाई के बजाय सिर्फ सिगरेट पीते हुए नजर आए। कुछ देर बाद गेस्ट हाउस की बिजली और पानी सप्लाई रोक दी गई। इसका भी आरोप उन्हीं पर लगा।
एसपी राजीव रंजन जिला मजिस्ट्रेट के साथ मिलकर गेस्ट हाउस खाली करवाने में जुट गए। पहले उन्होंने उन्हें निकाला जो विधायक नहीं थे। इसके बाद वह विधायकों को निकालने लगे तो बहस हो गई। सरकार का आदेश था कि विधायकों पर लाठी चार्ज नहीं किया जाए। लेकिन स्थिति ऐसी थी कि बल प्रयोग करना पड़ा। रात के 9 बजे से 11 बजे तक इस मामले में राज्यपाल कार्यालय, केंद्र सरकार और वरिष्ठ बीजेपी नेताओं का दखल हो गया और भारी सुरक्षा बल पहुंच गया।
फिर अगले दिन ही मायावती बन गई मुख्यमंत्री
रात में जब भारी पुलिस फोर्स पहुंची और मायावती को लग गया कि अब वह सुरक्षित हैं तब जाकर कमरे से बाहर आईं। मायावती को किसने बचाया, सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान कहते हैं कि बीजेपी नेताओं ने बचाया जैसे दावों में दम नहीं है। जब यह घटना शुरू हुई तो यहां भारी संख्या में मीडिया पहुंच गई। सपा के लोग हटाना चाहते थे, लेकिन मीडिया हटी नहीं। 2 जून को मायावती 39 साल की उम्र में यूपी की मुख्यमंत्री बन गई। 2 जून से पहले मायावती अक्सर साड़ी पहने हुए नजर आती थीं, लेकिन इस घटना के बाद उन्होंने कभी साड़ी नहीं पहनी।
इस दौरान बसपा के कई विधायकों पर भी हमला किए जाने की बात कही जाती है। मायावती ने जैसे तैसे खुद को वहां से बाहर निकाला और एक कमरे में खुद को बंद कर लिया। बाद में ये पूरी घटना ही गेस्ट हाऊस कांड के नाम से चर्चित हुई। चूंकि अतीक पर भी ये आरोप था कि वो सपा के कार्यकर्ताओं के साथ वहां मौजूद था इसी के चलते, मायावती ने कभी भी अतीक अहमद को अपने आगे फटकने नहीं दिया और जब वह 2007 में बहुमत के साथ मुख्यमंत्री बनीं तो अपनी ही पार्टी के नवनिर्वाचित विधायक राजू पाल की हत्या मामले में अतीक पर कानून शिकंजा कसवा दिया, जिसके बाद सांसद अतीक अहमद को आत्मसमर्पण करने पर मजबूर होना पड़ा।