लाखों खर्च कर वसीके (वजीफे ) की सैकड़ो की राशि लेने देश- विदेश से आते है लखनऊ नवाबों के वंशज
लखनऊ : अवध के नवाब अपने राजसी ठाठ बाठ और शाही विलासिता पूर्ण जीवन जीने के लिये विख्यात थे। वर्तमान में नवाबों के करीबन 1500 वंशज देश विदेश में बसे हुए है। नवाबों के वंशज हर साल हज़ारों लाखों रुपये खर्च कर हर महीने की 7 तारीख को लखनऊ के हुसैनाबाद में बनी ऐतिहासिक ईमारत पिक्चर गैलेरी स्थित वसीका कार्यालय अपनी चंद रूपये की उस पेंशन लेने को आते है,जो उन्हे शाही पेंशन के रूप में भारत सरकार द्वारा दी जाती है।
इन रॉयल फैमिली को जो पेंशन मिलती है, वह महज कुछ रूपये है। इस चंद रूपये की शाही पेंशन को नवाब साहब की विरासत के रूप मे देखा जाता है। नवाब साहब की तरह उनके परिवार के कई अन्य वंशज विदेशों से लाखों खर्च कर भारत आते है, अपनी कुछ रूपये की पेंशन लेने के लिए।
समय के साथ इनकी संख्या बढ़ती गई और भत्ता कम होता गया। शाही वंश के लोगों के अलावा, नवाब के नौकरों के वंशजों को भी वसीक़ा मिलता है । इसके अलावा, प्राप्तकर्ता की मृत्यु पर, बच्चे वसीकेदार बन जाते हैं ।
आज, लगभग 85 वसीक़ेदारों में से कई ऐसे हैं जिन्हें मासिक वसीक़ा के रूप में एक रुपया और कुछ पैसे मिलते हैं । 1989 तक, केवल 10 रुपये तक का भुगतान नकद में किया जाता था। नवाब नसीरुद्दीन हैदर की वंशज कमर जहां बेगम को 10.03 रुपये का वसीका चेक से मिलता था।
वसीक़ा कार्यालय केंद्रीय गृह मंत्रालय के अंतर्गत आता है । जमाराशियों पर भारतीय रिज़र्व बैंक का नियंत्रण होता है और उन पर आज भी वही 5-6 प्रतिशत ब्याज लगता है। वसीक़ेदार इस बात से नाराज़ हैं कि नवाब की संपत्ति और आभूषणों का कभी भी पुनर्मूल्यांकन नहीं किया गया।
अवध एक्स-रॉयल फ़ैमिली एसोसिएशन के महासचिव शम्सुद्दीन हैदर कहते हैं, "19वीं सदी में किए गए मूल्यांकन के आधार पर ब्याज देना सरकार की ओर से आपराधिक है।" उनका तर्क है कि आज संपत्ति की कीमत करोड़ों में होनी चाहिए।
वर्तमान में मिल रही यह अल्प राशि
वसीकेदारों की अपनी विरासत पर गर्व की भावना को कम नहीं करती है । एक ऑटो उत्पाद कंपनी में सेल्समैन, युवा आसिफ क़ज़लबाश, जिन्हें वसीक़ा के रूप में प्रति माह 3.49 रुपये मिलते हैं, कहते हैं, ''मैं चाहूंगा कि अगर मुझे कुछ पैसे भी मिले तो भी यह परंपरा जारी रहे।' '
अवध के नवाब मीर अब्दुल्ला जाफर हर साल अपनी 37 रूपये की पेंशन लेने के लिए शाही सवारी पर बैठ लखनऊ स्थित वसीका कार्यालय हर महीने राजसी अंदाज़ में आते हैं। यह पेंशन नवाब साहब और उनके पूर्वजो को अंग्रेजो के शासन काल से मिलती आ रही है। नवाबों के वारिस 'वसीका' यानी शाही पेंशन के मात्र कुछ रुपये लेने के लिए लाखों रुपये खर्च कर लखनऊ आने से परहेज नहीं करते हैं। उनका कहना है कि वे नवाबों की पुश्तैनी परंपरा खत्म नहीं होने देना चाहते।
राजे-रजवाड़ों को मिलने वाला प्रिवीपर्स तो कब का खत्म हो गया, पर अवध के नवाबों के वंशजों व कृपापात्रों को लगभग उसी की तर्ज पर 1816 में शुरू हुए वसीका की रकम का भुगतान अब भी बाकायदा जारी है। यह और बात है कि समय के साथ बंटते व घटते-घटते यह रकम अब इतनी कम हो गई है कि इससे पाने वालों की माली हालत पर कोई खास असर नहीं पड़ता। इन नवाबो को वसीका कार्यालय एक रूपये से ले कर 600 रूपये शाही पेंशन के रूप मे देता है। यह वसीका इन सभी नवाबो के लिए रकम से ज्यादा पहचान बन चुका है, जो रायल नवाब फैमिली से उनकी सम्बन्ध स्थापित करता है।