भारतीय कम्युनिस्ट और वामपंथी कार्यकर्ता कहीं ऐसे लोगों का एक समूह तो नहीं है जो विदेशी धन प्राप्त करके उन भारतीय व्यवसायियों को खत्म करने की कोशिशें करते है जो उनके अंतर्राष्ट्रीय कार्टेल का हिस्सा नहीं हैं या वे उन्हें अपनी भव्य जीवन शैली के लिए पैसा नहीं देते हैं। इस कार्टेल में सबसे ज्यादा सँख्या में ऐसे कथित पत्रकार है जो देशविरोधी नेरेटिव को अपने लेखों के माध्यम जनता को पहुंचाते है। दूसरे तरीके के वे लोग है जो राजनीती से जुड़े है और विदेशी संस्थाओं और NGO से फण्ड लेकर ऐसे पत्रकारों की देश विरोधी सोच को आगे प्रमोट करते है। तीसरे नंबर पर कार्टेल में ऐसे कथित NGO है जिनका काम भारत में विकास और सौहार्द को खत्म करना है। ऐसे NGO भारत में चलने वाले लगभग हर बड़े प्रोजेक्ट को टारगेट करते है,गरीबों को प्रोजेक्ट से होने वाले कथित नुकसान की बातें फैलाते है।
क्या आप जानते हैं कि अडानीग्रुप के खिलाफ सुनियोजित साजिश के पीछे कौन है? पिछले महीनें की 25 तारीख को शॉर्ट-सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी और इसके साथ ही अडानी ग्रुप के खिलाफ बहुत सुनियोजित और समन्वित हमले शुरू हो गए। यह हमला बहुत कुछ वैसा ही है जैसे भारत विरोधी जॉर्ज सोरोस ने बैंक ऑफ इंग्लैंड और बैंक ऑफ थाईलैंड को ख़त्म करने के दौरान किया था।
शॉर्ट-सेलर हिंडनबर्ग शोध की एक रिपोर्ट के बाद कुछ जयचंदो के एक कार्टेल ने अडानी के खिलाफ एक नेगेटिव नैरेटिव तैयार किया है।यह हमला हिंडनबर्ग शोध रिपोर्ट के बाद 25 जनवरी 2023 को शुरू नहीं हुआ है, बल्कि ऑस्ट्रेलिया से साल 2016-17 में शुरू हुआ था।
साल 2017 में 350.org नाम के एनजीओ के नेतृत्व में कुछ अन्य एनजीओ द्वारा अडानी के खिलाफ विरोध शुरू किया गया।
उन्होंने इस प्रोजेक्ट को रोकने के लिए एक ग्रुप StopAdani बनाया। इस एनजीओ 350.org को टाइड्स फाउंडेशन द्वारा फंडिंग दी जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि टाइड्स फाउंडेशन को फंड कौन देता है? इसमें सोरोस, फोर्ड फाउंडेशन, रॉकफेलर, ओमिडयार और बिल गेट्स के नाम हैं।
भारत में एक एनजीओ नेशनल फाउंडेशन फॉर इंडिया (NFI) है और एनएफआई के दानदाताओं की सूची में सोरोस, फोर्ड फाउंडेशन, रॉकफेलर, ओमिड्यार, बिल गेट्स और अजीम प्रेमजी के नाम भी हैं।
इस एनजीओ नेशनल फाउंडेशन फॉर इंडिया (NFI) में सीमा चिश्ती मीडिया फेलोशिप सलाहकार हैं जो कि माकपा नेता सीताराम येचुरी की पत्नी हैं।साथ ही द वायर में संपादक हैं। कारवां वेबसाइट के लिए लिखती हैं।
लेकिन कभी ये खबरों में नहीं आया कि एक कम्युनिस्ट राजनेता की पत्नी को एक एनजीओ से वेतन और भत्ते मिलते हैं, जिसे फोर्ड, बिल गेट्स, अजीम प्रेमजी, सोरोस, रॉकफेलर, ओमिडयार, आदि जैसे अरबपतियों द्वारा वित्त पोषित किया जाता है। द वायर का सोरोस, फोर्ड, बिल गेट्स, अजीम प्रेमजी, ओमिडयार और रॉकफेलर द्वारा वित्तपोषित एनएफआई के साथ एक विशेष गठजोड़ है। दिलचस्प बात यह है कि द वायर ने 2017 में अडानी के ऑस्ट्रेलिया प्रोजेक्ट के बारे में उसके खिलाफ पांच प्रचार लेखों की एक श्रृंखला लिखी है।
दूसरी और धन्या राजेंद्रन एनएफआई में एक और मीडिया फैलोशिप सलाहकार हैं। वे द न्यूज़ मिनट की सह-संस्थापक हैं, जो IPSMF द्वारा फंडेड है और MDIF के माध्यम से सोरोस से जुडी हुई है। धन्या राजेंद्रन ने डिजिपब (dijipub) नाम से लोगों और प्रचार प्रोपोगेंडा वेबसाइटों का एक कार्टेल बनाया है।
मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपी, न्यूज़क्लिक के कट्टर कम्युनिस्ट प्रबीर पुरकायस्थ इस कार्टेल के उपाध्यक्ष हैं। अब संस्थापक सदस्यों की सूची में नाम देखने पर पता चलता है कि IPSMF द्वारा फंड लगभग सभी को दिया जाता है। अगर आप प्रोपगंडा वेबसाइटों से जुड़े लोगों की टाइमलाइन चेक करेंगे, तो आपको अडानी के खिलाफ लगभग वही प्रॉपेगैंडा ट्वीट और समन्वित हमले मिलेंगे। इस कार्टेल से जुड़े कुछ उदाहरण ऐसे है जो बताते है कि कैसे उन्होंने अडानी के खिलाफ अपने प्रचार लेख और ट्वीट के साथ सोशल मीडिया और उनकी वेबसाइटों पर समन्वित हमले की शुरुआत की है।
आइए डिजिटल कार्टेल डिजिपब के संस्थापक धन्या राजेंद्रन से तथ्यों को खंगालना शुरू करते हैं। इस कार्टेल का अगला सदस्य सोशल मीडिया यूजर @TheDeshBhakt है,जिसे उसकी टाइमलाइन देख कर समझा सकता है। इसके साथ ही अजीत अंजुम और आलोक जोशी जैसे पत्रकार डिजीपब कार्टेल के एक व्यक्तिगत सदस्य हैं। इन डिजिटलशार्पशूटर्स की सूची देखने के बाद आप उनकी वेबसाइटों और सोशल मीडिया खातों की जांच कर सकते हैं।
इसे देखने के बाद आप बड़ी आसानी से समझ जाएंगे कि वे एक सुनियोजित हमले में शामिल हैं। लिस्ट के सभी डिजिटलशार्पशूटर विदेशी एनजीओ और अपने भारतीय भागीदारों से राष्ट्रवादी लोगों या संगठनों को टारगेट करने के लिए प्रशिक्षण और धन प्राप्त करते हैं। नए डिजिटलशार्पशूटर्स इन विदेशी फंडेड एनजीओ से अपनी ट्रेनिंग लेते हैं और उन्हें द वायर, द कारवां, ऑल्टन्यूज़, न्यूज़क्लिक इत्यादि प्रचार वेबसाइटों द्वारा भर्ती किया जाता है।
इसे एक उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है। हालिया बीबीसी की विवादित डॉक्यूमेंट्री में सबसे पहले जो किरदार बताया गया है वो कथित पत्रकार आलीशान जाफरी है, जिन्हें एक विदेशी फंडेड NGO, NFI में फेलोशिप मिली थी । सीमा चिश्ती ने उनकी मदद की और उनका मार्गदर्शन किया। सीमा चिश्ती दस साल तक बीबीसी की संपादक रहीं और अब वह द वायर की संपादक हैं। DigitalSharpshooters ऐसे लोग है जो The Wire, Article 14, The Caravan, Aljazeera जैसी प्रचार वेबसाइटों के लिए काम करते हैं, उन्हें इस विदेशी फंडेड NFI से फेलोशिप मिली है और इसे वेरिफाई करने के लिए आप उनकी वेबसाइट पर चेक कर सकते हैं।
अडानी पर हिंडनबर्ग पर हमला करना एक बहुत ही सुनियोजित और समन्वित हमला है? इसे समझने के लिए StopAdani Australia ग्रुप के रीट्वीट देख कर अनुमान लगाया जा सकता है।
यह प्रोपेगेंडा स्टॉप अडानी (Stopadani) ग्रुप लगातार रवि नायर के ट्वीट्स को रीट्वीट कर रहा है। अब सवाल ये कि कौन हैं रवि नायर? रवि नायर द वायर, न्यूज़क्लिक और जनता का रिपोर्टर के लिए लिखते हैं और ये सभी वेबसाइट डिजीपब (Dijipub) कार्टेल का हिस्सा हैं।
क्या आप जानते हैं कि केवल एक भारतीय उद्योगपति गौतम अडानी को बदनाम करने के लिए एक ऑस्ट्रेलियाई एनजीओ द्वारा एक विशेष वेबसाइट बनायीं गयी है? बॉब ब्राउन फाउंडेशन, जिसे एक पर्यावरणविद् एनजीओ माना जाता है और ये अदानीवॉच.ओआरजी (adaniwatch.org) नाम से एक प्रोपेगेंडा वेबसाइट चलाते है। इस वेबसाइट को बनाने की शुरुआत ऑस्ट्रेलिया में अडानी की कोयला खदानों की परियोजनाओं के विरोध से हुई थी, लेकिन यह यहीं तक सीमित नहीं थी।
अब बॉब ब्राउन फाउंडेशन नामक एनजीओ की वेबसाइट कुछ भी ऐसा पब्लिश किया जाता है जो कि अडानी ग्रुप के विरोध में हो चाहे अडानी से उस तथ्य या खबर का दूर से भी कोई लिंक हो।
आपको पता चलेगा कि इस एनजीओ का एकमात्र उद्देश्य अडानी ब्रांड की छवि को टारगेट करना है। उनके प्रचार लेख किसी भी एजेंडे से संचालित वामपंथी संगठन की तरह ही भारतीय राजनीति में फ्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन "FoE" के नाम पर घुसपैठ करते हैं। इसे एक उदाहरण के द्वारा समझा जा सकता है। एक पत्रकार रवीश कुमार के एनडीटीवी छोड़ने पर ऑट्रेलियन एनजीओ की वेबसाइट ने खबरें चलायी थी लेकिन ये समझ से परे था कि इससे उस वेबसाइट का क्या लेना देना है ?
क्यों एक पर्यावरणविद् एनजीओ बीबीसी डॉक्यूमेंट्री पर एक ट्वीट का समर्थन करता है ? उसका असली मकसद क्या है?
क्या आपको पता है कि क्या कारण है कि बॉब ब्राउन फाउंडेशन (एक पर्यावरणविद् एनजीओ) विपक्ष के प्रति नरम हो जाता है।
वे कांग्रेस या टीएमसी के नेतृत्व वाले राज्यों में अडानी परियोजनाओं को टारगेट नहीं करते हैं और नेरेटिव फैलाते है कि अडानी "मोदी-पसंदीदा" होने की छवि से दूर जाने के लिए इन विपक्षी राज्यों में अपना बिजनेस फैला रहे हैं। न्यूज़क्लिक के पत्रकार रवि नायर अडानीवॉच वेबसाइट से जुड़े हुए हैं जो कि बीबीएफ के ट्विटर हैंडल से उनकी लगभग हर पोस्ट का समर्थन किया करते है।
हिट-जॉब पीस/पोस्ट लिखने के लिए नायर कथित तौर पर अडानी समूह द्वारा मानहानि के मुकदमे का सामना भी कर रहे हैं।
स्टॉप अडानी (stopadani) कैंपेन में बॉब ब्राउन फाउंडेशन नामक एनजीओ की प्रमुख भूमिका है जिसे उनकी 2017 की वार्षिक रिपोर्ट देखकर समझा जा सकता है।
2020 में, BBF को ऑस्ट्रेलिया में करदाताओं द्वारा "चैरिटी संस्था " नहीं होने के कारन कोर्ट में चुनौती भी दी गई थी। BBF ने स्पष्ट रूप से आरोपों का बचाव करते हुए कहा कि यह केवल चैरिटी में एक पंजीकृत संगठन है।
बीबीएफ के सीईओ स्टीवन चाफर पहले ग्रीनपीस एंड एमनेस्टी (ऑस्ट्रेलिया शाखा) से जुड़े रहे हैं। संयोग से भारत में इन दोनों एनजीओ को कई कानूनों के उल्लंघन के लिए बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है।
कुल मिलाकर ये सारी साजिशें न केवल अडानी के खिलाफ है बल्कि सभी राष्ट्रवादी भारतीय कम्पनियो के खिलाफ है और भारत सरकार को सोशल मीडिया पर निगरानी तंत्र को मजबूत करने की जरुरत है वरना ऐसे ही हिंडनबर्ग जैसी कम्पनिया अपने कार्टेल का प्रयोग कर भारतीय कम्पनियो और बाजार को टारगेट करते रहेंगें।
सोर्स: The Hawk Eye @thehawkeyex ,विजय पटेल @vijaygajera and Social Media
नोट : उपरोक्त आर्टिकल सोशल मीडिया पोस्ट के आधार पर लिखा गया है जिसके किसी भी तथ्य की पुष्टि और समर्थन के लिए वेबसाइट ओनर और पब्लिशर उत्तरदायी नहीं है। तथ्यों को वेरीफाई करने के लिए स्वविवेक का उपयोग किया जा सकता है।