अमेरिका की नई फर्जी स्क्रिप्ट : LIC के पैसे से मोदी ने बचाया अडानी की कंपनी को !
कभी समय था जब भारत-अमेरिका की दोस्ती ‘सूपरपावर’ और ‘सबसे बड़ी लोकतंत्र’ के नारे के बीच झूलती थी। लेकिन दुकानदारी के इस दौर में खबरें भी अब सच्ची कम, स्क्रिप्टेड ज्यादा लगती हैं।
अब देखिए—Washington Post अपने श्रीमुख से ‘खुलासा’ करता है कि मोदी सरकार ने LIC के पैसों से अडानी को 3.9 अरब डॉलर की मदद दी, खास उसी वक्त जब अमेरिका में अडानी पर वित्तीय धांधली के आरोप लगे हैं।अमेरिकन मीडिया का ये खुलासा ऐसे समय आता है जब भारत-अमेरिका के बीच ट्रेड वार्ता चल रही है। व्हाइट हाउस की टीम के कानों में अचानक क्या घंटी बजी, कि आम के आम, “हिट पीस” के दाम!
अब इसका रस्साकशी वाला दिलचस्प पहलू देखिए—
अमेरिका का इल्जाम: “भारत अपने पूंजीपतियों को खड़ा कर रहा है।”
भारत का जवाब: “अरे भाई! LIC, रेलवे, बंदरगाह, सीमेंट, ग्रीन एनर्जी — विकास की गाड़ी दौड़ रही है। और तुम्हारे अखबार तो आंधी में अशांति ढूंढने निकले हैं!” अमेरिका जानता है negotiation में दबाव कैसे बनाया जाता है; पहले मीडिया में हल्ला मचाओ, फिर बैकडोर डील में टेबल पर छूट मांगो।LIC पर भावुकता का तमगा— “ये गरीब लोगों का पैसा है, क्रोनी पूंजीपतियों को नहीं मिलना चाहिए।”
फिर कोई नहीं पूछता कि LIC स्टेट बैंकों की तरह बड़े-बड़े डूबते बिज़नेस में पहले भी पैसे फंसा चुका है, और निवेश प्रॉफिटेबल भी हुआ है या नहीं—ये बात गौर से पढ़िए तो खुद Adani ग्रुप कह रहा है “LIC को हमारे पोर्टफोलियो से फायदा मिला है।”जहां अमेरिका में Trump White House अब trade deals में नई concessions निकलवाना चाहता है, वहीँ ऐसे समय में पत्रकारिता भी chess pieces का रोल निभाती दिख रही है।
एक तरफ fraud के आरोप, दूसरी ओर इंडिया से छूट और सौदे की चाह — जिसके लिए ‘हिट पीस’ “ऑर्डर” पर छप जाता है !आखिर में सोचिए—भारत की अर्थव्यवस्था, विदेशी पूंजी और ट्रेड डील का रोमांच हो या मीडिया का ग्लोबल टॉप 10 डरावना खेल—सबके बीच LIC की आत्मा डर के मारे शॉट सर्किट मार रही है, और जनता सिर्फ इतना सोच रही है:
“हिट पीस’ छपे या ‘डील’ हो — अंत में ‘पॉलिसी’धारक हमेशा घाटे में!”सच्चाई यह है—Washington Post की खबर पहले भी विवादित और पूर्वाग्रह से ग्रस्त बताई जा चुकी है। LIC की Adani में निवेश नीति सरकारी एजेंसीज़, विपक्ष और विशेषज्ञ सबकी बहस का विषय है।US और India के बीच चल रही ट्रेड डील में इस तरह की रिपोर्टें often ‘pressuring tactics’ की शक्ल ले लेती हैं।