Breaking News

Dr Arvinder Singh Udaipur, Dr Arvinder Singh Jaipur, Dr Arvinder Singh Rajasthan, Governor Rajasthan, Arth Diagnostics, Arth Skin and Fitness, Arth Group, World Record Holder, World Record, Cosmetic Dermatologist, Clinical Cosmetology, Gold Medalist

Bollywood / असली टाइगर रॉ एजेंट रवीन्द्र कौशिक थे राजस्थान से, जीवनी पर ‘ब्लैक टाइगर’ बनाएंगे अनुराग बासु

arth-skin-and-fitness असली टाइगर रॉ एजेंट रवीन्द्र कौशिक थे राजस्थान से, जीवनी पर ‘ब्लैक टाइगर’ बनाएंगे अनुराग बासु
विष्णु शर्मा June 10, 2023 10:04 AM IST

जग्गा जासूस.. मर्डर, गैंगस्टर, लाइफ इन ए मेट्रो और बर्फी जैसी फिल्में बना चुके निर्देशक अनुराग बासु ने कभी पुरुलिया कांड पर ये मूवी बनाई थी. फिल्म के हीरो थे रणवीर कपूर और साथ में थी कैटरीना कैफ. अब फिर वो एक मूवी लेकर आ रहे हैं, लेकिन इस बार एक सच्चे जासूस की, रॉ के उस एजेंट रवीन्द्र कौशिक की, जिसे कभी इंदिरा गांधी ने ‘ब्लैक टाइगर’ नाम दिया था, यानी ऐसा टाइगर जो अंधेरे में दिखाई ना दे. अंधेरा यानी पाकिस्तान और वो भारतीय जासूस पाकिस्तानी सेना में एक दिन मेजर के पद तक पहुंच गया था. लेकिन उसके पकड़े जाने के बाद जो हुआ उससे रॉ समेत सारी खुफिया एजेंसियों और सरकार पर तो आज तक सवाल उठते ही हैं, कौशिक की कहानी पर ऐसा अंधेरा छाया कि कई बार ऐलान होने के बावजूद रवीन्द्र कौशिक पर आज तक कोई आधिकारिक फिल्म नहीं बन पाई.

 

दरअसल 1968 में जब राम नाथ कॉव ने इंदिरा गांधी के कहने पर रिसर्च एंड एनालिसिस विंग को शुरू किया था, तब बस कहीं से भी ढूंढकर एजेंट्स बनाने की जिद जैसी थी, उनके पकड़े जाने पर उनको बचाने के लिए क्या करना है, इसकी कोई योजना तैयार नहीं थी, यहां तक कि उनके बाद उनके परिवार को ठीक से आर्थिक मदद ही मिल जाए, ये भी तय नहीं किया गया. रवीन्द्र कौशिक के मामले में भी उनके परिवार को केवल 500 रुपए महीने की सहायता मंजूर की गई, कुछ सालों के बाद उसे बढ़ाकर 2000 रुपया प्रति महीना किया गया. 2006 में उनकी मां की मौत तक ये पैसा मिला, सोचिए उन दिनों भी इस पैसे से कैसे गुजारा होता होगा?

 

एक था टाइगर, वॉर, मिशन मजनूं और पठान देखकर रोमांचित हो रहे युवाओं के लिए रवीन्द्र कौशिक की सच्ची कहानी काफी रोमांचकारी हो सकती है कि कैसे पाक बॉर्डर पर बसे गंगानगर (राजस्थान) में जन्मे रवीन्द्र अपने कॉलेज के हीरो थे, स्पोर्ट्स से लेकर थिएटर तक उनकी धाक थी. पिता एयरफोर्स में थे, 1962 के युद्ध में वीर अब्दुल हमीद के वीरता भरे बलिदान से प्रभावित होकर देश के लिए कुछ करना चाहते थे. देश भर में एजेंट्स ढूंढ रहे तब के रॉ अधिकारियों ने 20 साल के इस लड़के को थिएटर में एक देशभक्ति के नाटक में एक्टिंग करते देखा तो उन्हें रॉ ज्वॉइन करने का प्रस्ताव दिया.

 

देशभक्ति से ओतप्रोत रवीन्द्र की बांछें खिल गई थीं, शायद वो उम्र का असर था, रगों में दौड़ता खून काफी गरम था उन दिनों, बिना घरवालों को बताए उर्दू और मुस्लिम तौर तरीकों आदि का प्रशिक्षण शुरू कर दिया. पंजाबी उसकी पहले से ही बेहतर थी. रॉ ने भारत से उनका सारा रिकॉर्ड गायब कर दिया और 23 साल की उम्र में सरहद पार करवा के पाकिस्तान भिजवा दिया. कराची यूनीवर्सिटी में नवी अहमद शाकिर के नाम से एडमीशन लिया, एलएलबी की और एक दिन पाक सेना में नौकरी भी मिल गई. धीरे धीरे मेजर के पद तक भी जा पहुंचे रवीन्द्र कौशिक. उनके बारे में लिखी गई तमाम किताबों में ये दावा किया जाता है कि उनकी वजह से 1974 से 1983 के बीच दर्जनों खुफिया जानकारी उन्होंने दीं जिसके चलते हजारों भारतीयों की जान बचाई गई. 

 

कहानी खराब हुई इनायत मसीह नाम के एक रॉ एजेंट की सरहद पर गिरफ्तारी के बाद, वो पाकिस्तानी प्रताड़ना में टूट गया और उसने रवीन्द्र कौशिक का राज भी खोल दिया. उसके बाद शुरू हुआ प्रताड़नाओं का दौर, जाहिर है जो कुलभूषण जाधव ने झेला है, वो कौशिक ने भी झेला होगा. फांसी की सजा भी मिली, जिसे पाक सुप्रीम कोर्ट ने घटाकर उम्र कैद में बदल दिया, जेलों में यातनाएं सहने के बाद एक दिन 2001 में टीबी और दिल की बीमारियों के चलते रवीन्द्र कौशिक की मौत मियांवाली सेंट्रल जेल में हो गई. 

 

हाल ही में नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई फिल्म ‘मिशन मजनूं’ में रवीन्द्र कौशिक का रोल सिद्धार्थ मल्होत्रा ने किया है. जानकारी के मुताबिक उसने पाक सेना में एक टेलर की बेटी अमानत से शादी कर ली थी. ये तो इस मूवी में भी दिखाया गया है लेकिन उसे मेजर के पद तक पहुंचते या जेल जाते नहीं दिखाया बल्कि भागने की कोशिश में एयरपोर्ट पर ही एनकाउंटर दिखा दिया गया है. मूवी में रवीन्द्र कौशिक की पत्नी की दुबई में मदद करते रॉ चीफ रामनाथ काव को भी दिखाया गया है, लेकिन हकीकत तो मां को मिलने वाले 500 रुपए थे. वो भी तब जबकि इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं.

 

शायद भारतीय फिल्म निर्माता इसीलिए रवीन्द्र कौशिक की रोमांचकारी कहानी होते हुए भी उससे फिल्में बनाते हुए कतराते रहे हैं. दूसरी वजह रवीन्द्र कौशिक के मां को लिखे गए पत्र हैं, जो उनकी मां के जरिए मीडिया में भी आ गए थे. इसमें कौशिक की अपने देश की सरकारों के प्रति नाराजगी साफ झलकती है, वो लिखते हैं, “क्या भारत जैसे देश के लिए कुर्बानी देने वालों को यही मिलता है?” इस पर भी संदेह था कि कुलभूषण जाधव के वीडियो बयान की तरह क्या उनसे भी तो ये पत्र नहीं लिखवाए जा रहे थे?

 

बावजूद इसके भारत में आज कोई कुलभूषण जाधव से नाराज नहीं है तो इसकी वजह ये है कि जाधव का परिवार अभी देश, खुफिया एजेंसियों या सरकार के खिलाफ कुछ नहीं बोल रहा है. तो इसके लिए जरूर सरकार या एजेंसियों ने उनके परिवार की मदद करके उन्हें भरोसे में लिया होगा. लेकिन रवीन्द्र कौशिक के मामले में ऐसा कुछ नहीं था, हर पार्टी की सरकार इस बीच आई और 2006 में मनमोहन सरकार के समय तक केवल 2000 रुपए महीना उनके परिवार को मिल रहा था.

 

‘मिशन मजनूं’ देखकर थोडी सी झलक मिल सकती है कि उस व्यक्ति ने कैसे पाकिस्तानी रिएक्टर का खुलासा करके भारत सरकार की मदद की थी, हालांकि रॉ पर इंदिरा गांधी की व्यक्तिगत एजेंसी बनकर विपक्षी नेताओं की जासूसी करने के आरोपों के चलते मोरारजी सरकार ने उनका बजट आधा कर दिया था. लेकिन इस राजनीतिक अंदरूनी लड़ाई का खामियाजा इन एजेंट्स को भुगतना पड़ा था. अब तक कितनी भी किताबें, मीडिया रिपोर्ट्स या फिल्में देख लीजिए, हर कोई रॉ के संस्थापक चीफ राम नाथ कॉव की तारीफें ही करता है, लेकिन रवीन्द्र कौशिक की कहानी सबसे ज्यादा उन्हीं पर सवाल है कि क्यों एजेंट्स के पकड़े जाने के बाद उनके परिवार की मदद की व्यवस्था नहीं की गई थी. जैसे आज जाधव के परिवार की हुई है? 

 

कौशिक के पिता तो उनकी खबर सुनकर दिल के दौरे से चल बसे तो मां को पता ही नहीं था कि उनका बेटा पाकिस्तान में है, जब पता चला तो मामूली 500 रुपए की पेंशन बांध दी गई. आज कौशिक की मां और चंद्रशेखर आजाद की मां में क्या अंतर रह जाता है? फिल्म वाले भी पता नहीं किस दवाब में उन पर फिल्म बनाने से डरते रहे. लेकिन कौशिक के किरदार के इर्दगिर्द थोडे से फेरबदल के कई फिल्में बनीं.

 

जिनमें कबीर खान की ‘एक था टाइगर’ को तो शुरू में कौशिक की कहानी कहकर ही बेचा गया, कौशिक के एक रिश्तेदार ने कबीर खान और यशराज पर केस भी कर दिया, उसमें भी एक पाकिस्तानी लड़की से हीरो की शादी दिखा दी गई. सलमान पहले से ही राजकुमार गुप्ता के साथ कौशिक की बायोपिक करने वाले थे, शायद यशराज के ऑफर के चलते उन्होंने राजकुमार गुप्ता को झटका दे दिया. लेकिन कबीर खान बाद में मुकर गए, कि मैं तो पहली बार कौशिक के बारे में जान रहा हूं. केस कोर्ट भी गया लेकिन मूवी में कई फेरबदल हो चुके थे, कुछ नहीं हो पाया. हालांकि हर कोई जानता है कि कौशिक को ही ‘ब्लैक टाइगर’ कहा जाता था, उसी से इस सीरीज के लिए ‘टाइगर’ नाम तय हुआ.

 

‘मिशन मजनूं’ भी आईबी अधिकारी बी रामन की किताब के इनपुट के आधार पर कौशिक की ही कहानी बताती है, टेलर की बेटी से हीरो शादी भी करता है. लेकिन उसको केवल न्यूक्लियर रिएक्टर की कहानी तक ही समेटकर हीरो का एनकाउंटर दिखा दिया गया है. उसमें भी परिवार को कोई कॉपीराइट आदि का पैसा नहीं दिया गया होगा. इसी तरह अनुराग बासु की ‘जग्गा जासूस’ भी उसी तरह की कहानी है.

 

देखा जाए तो अनुराग बासु दोबारा कौशिक की कहानी कहने जा रहे हैं, इस बार आधिकारिक तौर पर. ‘जग्गा जासूस’ में रणवीर कपूर के पिता के रोल में थे बंगाली अभिनेता सास्वत चटर्जी जो बादल बागची के किरदार में खुफिया एजेंट के रोल में थे, दुश्मन के इलाके में रहकर पुरुलिया कांड आदि का खुलासा किया, लेकिन उनका राज खुल जाता है, तब उनका अनाथ बेटा (रणवीर कपूर) उनकी जान बचाता है, फिल्म जासूसी से ज्यादा कॉमेडी बनकर रह गई और दर्शकों ने उन्हें इसके लिए बख्शा भी नहीं. शायद इस बार इसीलिए अनुराग बासु की समझ आया हो कि बिना नाम लिए उन्होंने कौशिक की कहानी के साथ जो किया, उसको नाम के साथ सच्ची श्रद्धांजलि देने का वक्त आ गया है.

  • fb-share
  • twitter-share
  • whatsapp-share
labhgarh

Disclaimer : All the information on this website is published in good faith and for general information purpose only. www.newsagencyindia.com does not make any warranties about the completeness, reliability and accuracy of this information. Any action you take upon the information you find on this website www.newsagencyindia.com , is strictly at your own risk
#

RELATED NEWS