ज्यादा दिन नहीं हुए जब पंकज त्रिपाठी अपने एक डायरेक्टर कमलेश मिश्रा पर भड़के हुए थे, मीडिया में उनके बयान आए कि उनका इस मूवी में छोटा सा रोल था, लेकिन उन्हीं के पोस्टर्स पूरी मुंबई में लगा दिए गए हैं, इस मूवी का नाम है 'आजमगढ़'. लेकिन मूवी देखने के बाद लग रहा है कि पंकज त्रिपाठी के आरोपों में सच्चाई नहीं है, इस मूवी में ना केवल वो मुख्य खलनायक की भूमिका में हैं, बल्कि ऐसे खलनायक की भूमिका में हैं, जिसका वो जिक्र आसानी से करना नहीं चाहेंगे.
वजह है फिल्म का विषय, आतंकवाद पर यूं तो तमाम फिल्में देश में बनती रही हैं, लेकिन उनमें मुस्लिम किरदारों को लेकर एक खास किस्म की संवेदनशीलता बरती जाती रही है. उन मूवीज में वो किरदार भारत के खिलाफ तो बोलते हैं, लेकिन हिंदुओं के खिलाफ कटु शब्दों के खुलेआम इस्तेमाल से बचते रहे हैं. इस मूवी में उसी तरह की बोल्डनेस निर्देशक कमलेश मिश्रा ने दिखाई है, जैसी विवेक अग्निहोत्री ने कश्मीर फाइल्स में और सुदीप्तो सेन ने दी केरला स्टोरी में दिखाई है, कम से कम ट्रेलर से तो ऐसा ही लगता है.
कहानी है यूपी के आजमगढ़ में रहने वाले आमिर (अनुज शर्मा) की, जो पढ़ाई में काफी अव्वल है और अपनी मां (अमृता वालिया) के साथ रहता है. जिस दिन वो बोर्ड परीक्षा में यूपी टॉप करने की मिठाई बांट रहा होता है, टीवी पर आजमगढ़ के उस मौलवी अशरफ अली (पंकज त्रिपाठी) की गिरफ्तारी की खबर चल रही होती है, जो उसको इंजीनियरिंग की पढ़ाई अपने खर्चे पर करवाने वाला था. उस पर आरोप था मुस्लिम युवाओं को बहकाकर आतंक के रास्ते पर भेजने का.
आमिर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) में बीएसएसी करने के दौरान कुछ मुस्लिम युवाओं के एक समूह के संपर्क में आता है, बाद में जमानत पर छूटने के बाद अशरफ अली से भी मिलता है और उसके जेहाद गैंग में शामिल होकर कई शहरों में बम विस्फोट को अंजाम देता है. धीरे धीरे वो अशरफ अली के करीबियों में शामिल हो जाता है, आमिल (सुसैन बरार) और कामिल (सुदर्शन भट्ट) की तरह.
एक के बाद एक शहर में बम ब्लास्ट के बाद जांच में आमिर का नाम सामने आता है, मां परेशान हो जाती है. इनमें राजस्थान के जयपुर ब्लास्ट भी शामिल थे. अशरफ अली भी आमिर और बाकी साथियों के साथ बचने के लिए बॉर्डर की तरफ रवाना हो जाता है. पीओके में उसकी मीटिंग हाफिज सईद और लखवी जैसे आतंकियों के साथ मीटिंग में सबको बड़े बड़े धमाकों के टारगेट दिए जाते हैं. अचानक आमिर आमिल को गोली मारकर हाफिज सईद का दिल जीत लेता है. आगे का क्लाइमेक्स देखा जाए तो एक आइडिया है, जो चौंकाने वाला भी है और आतंक को खत्म करने का अतिश्योक्ति भरा फॉर्मूला भी.
हे बेबी जैसी फिल्मों में हाफिज सईद का किडनैप दिखाया गया था, लेकिन इस मूवी में किसी एजेंट जैसे रोल के लिए जगह ही नहीं थी. हां जिन लोगों ने अमिताभ को मूवी इंकलाब देखी होगी, उन्हें जरूर कहानी का कुछ अंदाजा हो सकता है. फिल्म में 2 या 3 गाने ही हैं, जो कहानी को ही आगे बढ़ाने के लिए निर्देशक ने खूबसूरती से इस्तेमाल किए हैं. इसमें निजामी ब्रदर्स की कव्वाली बहुतों को पसंद भी आ रही है. मूवी के साथ दरअसल समस्या बजट की दिखती है, ये विषय ज्यादा बजट मांगता था. इसी के चलते मूवी काफी समय अटकी भी रही. निर्देशक ने फिल्म में जिस तरह से टीवी रिपोर्ट्स के सहारे कई सारे सीन्स की बचत की है, सीखा जा सकता है.
ये मूवी आजमगढ़ एक नए ओटीटी प्लेटफॉर्म मास्क टीवी पर रिलीज हुई है. जिन लोगों ने कमलेश मिश्रा का काम दिल्ली दंगों पर बनी उनकी डॉक्यूमेंट्री मूवी में देखा है, वो इस मूवी को देखे बिना नहीं रह सकते. ये अलग बात है कि पंकज त्रिपाठी के जबरा फैंस के लिए भी उनका ये किरदार भी चौंकाने वाला है, उनको काफिरों को खुल कर गाली देते और इस्लाम के पैरोकार की तरह जेहादी बातें करते देखना उनके लिए एक नया अनुभव होगा. कई जगह कैमरे का काम अच्छा हुआ है.
निर्देशक: कमलेश के मिश्रा
स्टार कास्ट: पंकज त्रिपाठी, अनुज शर्मा, अमृता वालिया, सुसैन बरार, सुदर्शन भट्ट आदि
कहां देख सकते हैं: मास्क टीवी
स्टार रेटिंग: 3