बड़ी खबर थी, लेकिन आम लोगों को ढंग से पता तक नहीं चल पाया, कि इंदिरा गांधी के साथ साथ नरगिस के नाम पर दिए जाने वाले राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से उनका भी नाम हटा दिया गया. दिलचस्प बात थी कि ना तो कांग्रेस ने ही कोई नाराजगी जताई और ना ही नरगिस के परिवार से किसी ने ऐतराज किया. माना जा रहा है कि दोनों ही पक्ष बखूबी समझते हैं कि इस पर नाराजगी जताएंगे तो सरकार व सत्तारूढ़ पार्टी कांग्रेस और गांधी परिवार से नरगिस-सुनीत दत्त के रिश्तों पर इतने तीर फेंक देगी कि जवाब देना तो दूर बचाव भी मुश्किल हो जाएगा.
कभी ऋषि कपूर गांधी-नेहरू परिवार के नाम पर योजनाओं, सड़कों, पुलों, स्टेडियमों, एयरपोर्ट्स आदि की लम्बी सूची लिए घूमते थे, तभी से कांग्रेस तो बैकफुट पर ही थी. ऊपर से जिस तरह से छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने दीनदयाल उपाध्याय के नाम वाली सरकारी योजनाओं का नाम बदलने के लिए उनकी पुण्यतिथि का दिन 11 फरवरी चुना था, उससे उनका सवाल पूछना और भी मुश्किल था. उसी तरह जानकार मानते हैं कि एक बार भी नरगिस दत्त के बेटे संजय दत्त या उनकी दोनों बहनों ने सवाल उठाया तो गांधी परिवार से जुड़े उनके मां-बाप के किस्सों की लाइन लग जाएगी और जाहिर है उनमें से से कुछ अच्छे नहीं हैं.
पहले जान लें कि मोदी सरकार ने इस ताजा फैसले में क्या क्या किया है. दरअसल मोदी सरकार के सूचना प्रसारण मंत्रालय ने अतिरिक्त सचिव की अगुवाई में एक कमेंटी राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों को लेकर बनाई थी, उसने अपनी अनुशंसा में ना केवल नरगिस व इंदिरा गांधी दोनों के ही नाम पर बने पुरस्कारों का नाम बदल दिया है, बल्कि कुछ का स्वरूप भी बदलने को कहा है, साथ ही कई पुरस्कारों के साथ मिलने वाली धनराशि चार गुना तक बढ़ा दी गई है.
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में इंदिरा गांधी पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ पहली फिल्म बनाने वाले फिल्मकार को मिलता था, पुरस्कार तो अब भी मिलेगा, लेकिन इंदिरा गांधी का नाम इस पुरस्कार में से हटा दिया गया है. इसी तरह ‘नरगिस दत्त अवॉर्ड फॉर बेस्ट फीचर फिल्म ऑन नेशनल इंटीग्रेशन’ पुरस्कार का नाम बदलकर ‘बेस्ट फीचर फिल्म प्रमोटिंग नेशनल, सोशल एंड एनवायरनमेंटल वैल्यूज’ कर दिया गया है.
बहुत कम लोगों को पता होगा कि ये नरगिस की मुख्य भूमिका वाली मूवी ‘मदर इंडिया’ ही थी, जिसे पहली बार भारत से एकेडमी अवॉर्ड्स के लिए भारत से आधिकारिक रूप से चुना गया था. नरगिस पहली ऐसी फिल्म अभिनेत्री थीं, जिन्हें भारत सरकार ने पदमश्री के लिए चुना था. ये नरगिस ही थीं, जिन्हें अपनी फिल्म ‘रात और दिन’ के लिए 1967 में उसी साल शुरू हुए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री चुना गया था. जबकि ये उनकी आखिरी फिल्म थी. नरगिस को इंदिरा गांधी ने 1980 में राज्यसभा के लिए भी चुना, और उनकी मौत के बाद उनके नाम पर ये पुरस्कार भी राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में इंदिरा गांधी ने ही शुरू किया था, अब दोनों की ही एक साथ विदाई हो गई.
नि: संदेह नरगिस एक कामयाब और बेहतरीन अभिनेत्री थीं, लेकिन उनको नेहरू इंदिरा सरकार ने जो सम्मान दिए, वो शायद ही उस दौर के किसी समकालीन अभिनेता या अभिनेत्री को मिले हों, गांधी नेहरू परिवार से उनके रिश्तों को लेकर तमाम विवाद भी जुड़े हैं. उन्हीं से ये पता चलता है कि ये आम रिश्ते नहीं थे, उन्हें जो भी मिला, उसमें उनकी प्रतिभा से ज्यादा उनके नेहरू इंदिरा से करीबी सम्बंध ज्यादा जिम्मेदार थे.
किश्वर देसाई ने तो उनको लेकर काफी विवादास्पद लिखा है, वह अपनी किताब ‘डार्लिंगजी’ में लिखती हैं कि कैसे नरगिस की नानी दिलीपा जो एक ब्राह्मण परिवार से थीं, ने मियांजान से शादी कर ली, जो इलाहाबाद में एक गाने वाली वजीरन के यहां सारंगी बजाते थे. जिस हवेली में ये दोनों रहते थे, उसी में मोतीलाल नेहरू अपने भाई नंदलाल नेहरू के साथ रहते थे. जवाहर लाल नेहरू के पैदा होने के 8-9 साल बाद दिलीपा की बेटी जद्दनबाई (नरगिस की मां) का जन्म हुआ. किश्वर देसाई इशारा करती हैं कि जद्दनबाई दरअसल मोतीलाल नेहरू और दिलीपा की बेटी थीं. इसकी पुष्टि तो नरगिस के भाई अनवर ने भी की थी कि जवाहर लाल नेहरू जद्दनबाई के राखी भाई थे और दोनों के अच्छे रिश्ते थे.
बाद में नरगिस ने जब फिल्मी दुनियां में अपनी जगह बना ली, तो वो सुनील दत्त के साथ प्रधानमंत्री पंडित नेहरू से मिलीं और 1962 के युद्ध के बाद जवानों के लिए कुछ शोज किए. इंदिरा गांधी ने भी नरगिस, सुनील दत्त से अच्छे रिश्ते बनाए रखे. ये बात भी आपके लिए बेहद चौंकाने वाली हो सकती है, जो बलवीर दत्त ने अपनी किताब ‘इमरजेंसी का कहर और सेंसर का जहर’ में लिखी है कि इमरजेंसी के दौरान अमेरिका में नरगिस एक डिपार्टमेंटल स्टोर में कुछ चोरी करते हुए पकड़ी गईं तो बाकायदा सारे अखबारों को सरकार की तरफ से ये निर्देश दिया गया कि ये खबर नहीं छापी जाए. ये बात उन्होंने उस वक्त के नौकरशाह नटवर सिंह के हवाले से लिखी है. इससे पता चलता है कि रिश्ते कितने गहरे थे.
गांधी परिवार सिर्फ करता ही नहीं था, बदले में करना भी पड़ता था, चुनावों में कांग्रेस का प्रचार करने के अलावा इमरजेंसी में भी ना केवल हरिवंश राय बच्चन को बयान जारी करना पड़ा बल्कि नरगिस-सुनील दत्त को भी इमरजेंसी के समर्थन में बयान जारी करना पड़ा था. जबकि उस वक्त वो दोनों बर्लिन (जर्मनी) में थे, वहां से भेजे टेलीग्राम में सुनील दत्त ने लिखा, “"Indians are with you, so is the German common man, declaring emergency is the right step taken. Do not bother about anyone, do whatever you feel right and good for the nation" (भारतीय आपके साथ हैं, वैसे भी जर्मनी के आम लोग भी आपके साथ हैं. इमरजेंसी घोषित करने का एकदम सही कदम उठाया गया है. किसी के बारे में मत सोचिए, जो आपको सही लगता है, देश के लिए अच्छा लगता है, वही करिए). सोचिए इंदिरा गांधी ने इस बयान को कैसे इस्तेमाल किया होगा कि ये दिखाने में कि ना केवल इतना बड़ा फिल्म स्टार इमरजेंसी के समर्थन में उनके साथ है बल्कि जर्मनी की आम जनता भी.
नरगिस की इंदिरा गांधी से कितनी करीबी है, ये फिल्म इंडस्ट्री का हर व्यक्ति जानता था. कभी सुनील दत्त से अचानक और चुपचाप शादी करने पर उनके लिए रिसेप्शन पार्टी सबको देने वाले सदाबहार हीरो देवआनंद भी. लेकिन देव आनंद को भी इंदिरा गांधी के मामले में एक बार नरगिस ने टका सा जवाब दे दिया था. देवआनंद ने ये पूरी कहानी अपनी आत्मकथा ‘रोमांसिंग विद लाइफ’ में लिखी है. देवआनंद ने बताया कि कैसे उन्हें भी इमरजेंसी के दिनों में बाकी सितारों के साथ संजय गांधी के एक कार्यक्रम में बुलाया गया था, जिसमें संजय गांधी की चापलूसी के अलावा कुछ भी नहीं था. बड़े बड़े नेता और सितारे संजय के आगे नतमस्तक हुए जा रहे थे. फिर देव साहब व दिलीप कुमार से उस कार्यक्रम के बाद टीवी पर यूथ कांग्रेस की तारीफ में कुछ बोलने को कहा गया, जिसके लिए देवआनंद ने साफ मना कर दिया और उसके बाद टीवी पर उनकी फिल्में दिखाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया.
तब देव साहब को इंदिरा की करीबी नरगिस की याद आई लेकिन नरगिस ने भी उन्हें कहा कि थोड़ी बहुत टीवी पर सरकार की तारीफ करने में क्या जाता है. देव साहब ने अपनी बात रखी तो वह ये कहकर निकल गईं कि ‘You are being unnecessarily stubborn’ (आप अनावश्यक जिद दिखा रहे हैं). हालांकि देव साहब स्वाभिमानी थे, बाद में इंदिरा गांधी के खिलाफ अपनी एक राजनैतिक पार्टी ही लेकर मैदान में उतर गए थे.
लेकिन एक समय पर केवल नरगिस, सुनील दत्त या बच्चन परिवार ही नहीं कई फिल्मी हस्तियों ने गांधी नेहरू परिवार से कई तरह के फायदे लिए थे, और कभी दवाब में तो कभी खुशी से उनके हर जायज, नाजायज काम में समर्थन भी दिया था. अब इस परिवार का जलवा उतार पर है, ऐसे में ये कोई हैरत की बात नहीं कि ना इंदिरा गांधी का नाम हटाने पर किसी ने ऐतराज जताया और ना ही नरगिस की पैरवी में कोई बोला.