आजादी के बाद लम्बे समय तक देश पर कांग्रेस का शासन रहा, जिसके चलते अनाधिकारिक रूप से ऐसे कई विषय थे, जो धीरे धीरे वर्जित घोषित होते चले गए. ये सभी विषय वो थे, जो कहीं ना कहीं कांग्रेस की विचारधारा के, उसके राजनैतिक उद्देश्यों के या सीधे शब्दों में कहें तो वोट बैंक के खिलाफ थे. लेकिन अब ऐसा लगता है उन सभी वर्जित विषयों पर मूवीज बनाने की बाढ़ सी आ गई है. सावरकर भी कांग्रेस और उसके जैसी विचारधारा वाले दलों के लिए एक वर्जित विषय ही थे, इस साल सावरकर जयंती पर 28 मई को उनकी जिंदगी की कहानी बड़े परदे पर बताने वालीं एक नहीं बल्कि दो दो फिल्मों का टीजर जारी हुआ.
एक थी हिंदी फिल्म इंडस्ट्री से और दूसरी साउथ से. सबसे दिलचस्प था साउथ की इस फिल्म से चिरंजीवी के बेटे राम चरण के प्रोडक्शन हाउस की शुरूआत. यूं सावरकर के चाहने वाले पूरे देश, दुनियां में हैं, लेकिन फिर भी हिंदी और मराठी बैल्ट में उनका प्रभाव अधिक है, ऐसे में राम चरण का अपनी पहली फिल्म के तौर पर उनकी कहानी को प्रोडयूस करना वाकई में बड़ी बात है.
इस मूवी का नाम होगा ‘इंडिया हाउस’, इस मूवी का टीजर जारी करते हुए अपनी ट्वीट में राम चरण ने लिखा, “On the occasion of the 140th birth anniversary of our great freedom fighter Veer Savarkar Garu we are proud to announce our pan India film - THE INDIA HOUSE headlined by Nikhil Siddhartha, Anupam Kher ji & director Ram Vamsi Krishna! Jai Hind!”. अपने प्रोडक्शन की पहली मूवी में राम चरण खुद काम नहीं करेंगे, बल्कि कार्तिकेयन सीरीज के हीरो निखिल सिद्धार्थ उसके हीरो होंगे, साथ में होंगे अनुपम खेर और डायरेक्टर होंगे राम वाम्सी कृष्णा जो स्क्रीन राइटर भी हैं और इतिहास कलेक्टिव के संस्थापक भी हैं.
रामचरण के प्रोडक्शन हाउस का नाम है ‘वी मेगा पिक्चर्स’, जिसमें उनके पार्टनर हैं विक्रम. फिल्म की टैगलाइन होगी ‘जय माता दी’ और फिल्म में निखिल के किरदार का नाम होगा ‘शिवा’. इससे ये भी पता चलता है कि फिल्म में निखिल सावरकर का रोल नहीं करेंगे और सावरकर के समय की कहानी भी शायद ही हो, बल्कि ये कहानी भी उसी तरह की हो सकती है, जिस तर्ज पर निखिल की बाकी फिल्में, कश्मीर फाइल्स, ताशकंद फाइल्स आदि बनी हैं. यानी थोड़ा सा फ्लैशबैक और उससे जोडकर ज्यादा सा वर्तमान और कोई इन्वेस्टीगेशन.
जाहिर है कहानी का नाम ‘इंडिया हाउस’ रखा गया है, तो कहानी भी इंडिया हाउस की उसी इमारत के इर्दगिर्द घूमेगी, जिसको कभी विदेशों में क्रांतिकारियों से सबसे बड़े संरक्षक श्यामजी कृष्ण वर्मा ने लंदन में बनवाया था और सावरकर उन्हीं की स्कॉलरशिप पर वहां पढ़ने पहुंचे थे. बाद में श्यामजी ने इंडिया हाउस की कमान सावरकर को सौंप दी और खुद फ्रांस चले गए. सावरकर ने वहां मदन लाल धींगरा को प्रशिक्षण दिया औऱ उसने कर्नल वाइली को मार दिया.
इंडिया हाउस में ही सावरकर से मिलने कभी गांधीजी तो कभी लेनिन आते थे. वहीं से उन्होंने बम बनाने का फॉरमूला पहली बार अनुशीलन समिति के लोगों तक पहुंचाया था, जिससे बम बनाकर खुदीराम बोस को दिया गया, और उन्होंने उसका इस्तेमाल भी किया. सावरकर ने 20 पिस्तौल भी भिजवाईं, जिनमें से एक से अनंत कन्हेरे ने नासिक के कलेक्टर जैक्सन को उड़ा दिया. सावरकर की गिरफ्तारी के बाद इंडिया हाउस सील कर दिया गया, अनंत कन्हेरे और मदन लाल धींगरा को फांसी दे दी गई.
इंडिया हाउस का मोदी कनेक्शन
सावरकर को काला पानी भेज दिया गया, इधर श्यामजी कृष्ण वर्मा की स्विटजरलैंड में मौत हो गई. मौत से पहले उन्होंने अपनी व पत्नी की अस्थियों के लिए वहां के एक अस्थि बैंक से टाईअप कर लिया था और अस्थियों को 100 साल की फीस देकर वहां रखवा दिया ये कहकर कि देश जब आजाद होगा तो कोई देशभक्त इन्हें भारत ले जाएगा. देश 17 साल बाद आजाद भी हो गया. 55 साल और गुजर गए. 2003 में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को जब इसके बारे में पता चला तो वह खुद इस गुजराती सपूत की अस्थियां भारत लेकर आए.
गुजरात के मांडवी के रहने वाले थे श्याम जी कृष्ण वर्मा, उनकी याद में मोदी ने मांडवी में ही इंडिया हाउस जैसा ही उनका स्मारक बनवाया, हूबहू वैसा ही. उसके बाहर उन दोनों की मूर्तियां भी लगवाईं. सावरकर के संरक्षक श्याम जी की जब मौत हुई थी तो जेल में बंद भगत सिंह ने अपने साथियों के साथ शोक सभा भी रखी थी. अब सवाल ये है कि ‘इंडिया हाउस’ की ही कहानी दिखाएंगे राम चरण या फिर उसके इर्द गिर्द कार्तिकेय जैसी ही कोई फंतासी रचेंगे. इसके लिए इंतजार करना होगा.
इंडिया हाउस के टीजर में शुरूआत ‘इंडियन सोशियोलॉजिस्ट’ नाम के अखबार से हुई है, जिसका सम्पादन श्याम जी कृष्ण वर्मा निकालते थे, फिर वो नाव चलाते दो मजबूत हाथ दिखते हैं और आसमान में लहराता वो ध्वज दिखता है, जिसमें ‘वंदेमातरम’ लिखा था, वही जिसे ‘आरआरआऱ’ में राम चऱण और जूनियर एनटीआर ने एक साथ लहराकर बच्चे की जान बचाई थी. दरअसल ये ध्वज वीर सावरकर ने ही डिजाइन किया था, जिसे मैडम भीखा जी कामा ने स्टुटगार्ट कॉनफ्रेंस में फहराया था.
अगले सीन में ब्रिज पर खड़ी भीखाजी कामा भी दिखती हैं, और आखिरी सीन में दिखता है जलता हुआ इंडिया हाउस, जिसके आगे सूटकेस लेकर खड़े हैं निखिल सिद्धार्थ. मूवी की टैग लाइन है ‘जय माता दी’ और टीजर से पहले लिखा आता है, उनकी तरफ से जो लाए आपके लिए ‘कश्मीर फाइल्स’ और ‘कार्तिकेय’. दरअसल राम चरण के साथ इस मूवी में पार्टनर है, ए ए आर्ट्स के अभिषेक अग्रवाल जो इससे पहले इन दोनों फिल्मों को भी प्रोडयूस कर चुके हैं.
हुड्डा की मूवी में टीजर में ही कांग्रेस पर निशाना
दूसरी फिल्म है ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’, जिसे लेकर आ रहे हैं रणदीप हुड्डा. फिल्म का टीजर बताता है कि ये सावरकर के ही जीवन पर बनी है. इस फिल्म को आनंद पंडित और संदीप सिंह ने प्रोडयूस किया है, संदीप सिंह उरी, पीएम नरेन्द्र मोदी, मैरी कॉम, सरबजीत जैसी असली कहानियों पर फिल्में बनाने के लिए जाने जाते हैं. ऐसे में सरबजीत के एक्टर रणदीप हुडडा को ही उन्होंने डायरेक्शन की कमान सौंप दी है. जिसमें सावरकर का रोल भी वो खुद ही कर रहे हैं, 26 किलो वजन रणदीप ने कम किया है और इस दौरान रोज एक गिलास दूध के साथ एक छुआरा ही लिया.
रणदीप पहले भी इन बायोग्राफिकल मूवीज के चक्कर में फंसकर काफी नुकसान उठा चुके हैं, ‘सारागढ़ी की लड़ाई’ पर उनकी फिल्म की तैयारी हो या फिर ‘कामागाटामारू कांड’ पर, लेकिन उनका इतिहास से ये लगाव कम नहीं हुआ. लेकिन उनका टीजर विवाद पैदा कर सकता है. उन्होंने अपने टीजर में लिखा है कि सावरकर ने नेताजी बोस, खुदीराम बोस और भगत सिंह को प्रेरणा दी. इस पर नेताजी बोस पर शोध करने वाले लेखक चंद्रचूड़ घोष ने प्रतिक्रिया दी है, ट्वीट कर उन्होंने लिखा है कि नेताजी बोस और खुदीराम बोस ने सावरकर से प्रेरणा नहीं ली, हालांकि उनके रिश्ते रहे हैं.
ये तो सर्वविदित तथ्य है कि खुदीराम बोस ने जो बम फेंका था, उसे सावरकर द्वारा भेजे गए बम मैन्युअल से ही बनाया गया था, सावरकर की एक सशस्त्र फौज की नेताजी बोस को सलाह भी काफी चर्चा में रही है. फॉरवर्ड ब्लॉक का हिंदू महासभा के साथ चुनावों में टाईअप भी रहा था, लेकिन ये भी सही है कि सावरकार का चुनावी स्वरूप बोस को पसंद नहीं आया था, तो नेताजी ने एक दो बयान उनके खिलाफ भी दे दिया था, जिसे सावरकर विरोधी इस्तेमाल करते आए हैं. लेकिन ये भी सर्वविदित है कि आजाद हिंद फौज के सिपाहियों को प्रेरणा देने के लिए बोस ने सावरकर की किताब ‘1857 का स्वातंत्रय समर’ का बंगाली अनुवाद भी करवाया था.
हालांकि ये मूवी टीजर में सीधे सीधे कांग्रेस के आजादी की लड़ाई में योगदान को खारिज करती है, गांधीजी के अहिंसात्मक रवैये पर सवाल उठाती है, कहती है कि आजादी की लड़ाई लड़ने वाले तो कम ही थे, बाकी सब तो सत्ता के भूखे थे. ये भी कहती है गांधीजी अहिंसात्मक रवैया ना अपनाते तो आजादी 35 साल पहले मिल जाती.
राजस्थान चुनाव से पहले बड़ा धमाका ‘अजमेर 92’
एक और मूवी रिलीज होने वाली है, जो कांग्रेस के लिए मुश्किलें पैदा करने वाली है. इस मूवी का नाम है ‘अजमेर 92’. दरअसल 1992 में अजमेर में एक बड़ा खुलासा हुआ था कि कैसे युवक कांग्रेस के कुछ नेताओं ने दो स्कूलों की 250 लड़कियों को एक एक करके जाल में फंसा लिया था, उनके फोटोज, वीडियोज बना लिए और लम्बे समय तक उनका यौन शोषण, ब्लैकमेलिंग की. इन नेताओं में दो युवा नेता अजमेर दरगाह के खादिमों के थे. इस मूवी को पुष्पेन्द्र सिंह निर्देशित कर रहे हैं, और ये मूवी 14 जुलाई को रिलीज होने जा रही है, दिखाया जाएगा कि कैसे कांग्रेस और दरगाह के अधिकारियों के दवाब में कुछ गिरफ्तारियां तो हुईं, लेकिन सजा नहीं हो पाई. राजस्थान चुनाव सर पर हैं, तो कांग्रेस को दिक्कत तो होनी ही है.
कुल मिलाकर तीनों ही फिल्में आज की नई पीढ़ी के लिए काफी विस्फोटक जानकारियों से भरी रहने वाली हैं, उस पर फिल्मकार जानबूझकर विवादों को भी हवा देंगे, कांग्रेस या बाकी पार्टियों की तरफ से भी कुछ प्रतिक्रियाएं भी आएंगी. लोग पूछेंगे कि अब तक क्यों छुपाया गया था? सो राजनीतिक पार्टियों को समझ भी आएगा कि वर्जित रखे जाने से वो विषय एक वक्त के बाद और भी हंगामाखेज तरीके से बाहर आते हैं और ज्यादा नुकसान करते हैं.